Introduction to Rahim Das Ji Ke Dohe
रहीम दास जी हिंदी साहित्य के महान कवियों में से एक हैं। उनका पूरा नाम अब्दुर रहीम खान-ए-खाना था। वे अकबर के नवरत्नों में से एक थे और उनकी ख्याति उनकी नीतिपूर्ण दोहों की वजह से है। रहीम के दोहे सरल भाषा में जीवन के गहरे सत्य बताते हैं। उन्होंने समाज, रिश्तों, धर्म और जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपने दोहों में बड़े सुंदर और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस लेख में हम आपके लिए लाए हैं 20+ श्रेष्ठ रहीम दास जी के दोहे, साथ में उनके अर्थ और व्याख्या भी दी गई है ताकि आप हर दोहे की गहराई को समझ सकें।
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रहीम दास जी का परिचय
पूरा नाम: अब्दुर रहीम खान-ए-खाना
जन्म: 1556, लाहौर
पिता: बैरम खान (अकबर के संरक्षक)
विशेषता: हिंदी, संस्कृत, अरबी, फारसी के ज्ञाता
मुख्य कृतियाँ: रहीम के दोहे, बरवै, नीति शास्त्र
रहीम के दोहों की विशेषताएँ
- सरल भाषा और गहरा संदेश
- नीति, व्यवहार, प्रेम, और करुणा पर आधारित
- धर्मनिरपेक्ष और मानवीय दृष्टिकोण
- संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली
रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे – अर्थ और व्याख्या सहित
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”
अर्थ:
केवल बड़ा होने से कुछ नहीं होता। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा होता है, पर वह न तो छाया देता है और न ही उसके फल आसानी से मिलते हैं।
व्याख्या:
यह दोहा हमें विनम्रता का संदेश देता है। केवल पद, प्रतिष्ठा या आकार में बड़ा होना उपयोगी नहीं है जब तक वह दूसरों को लाभ न पहुँचा सके।
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय॥”
अर्थ:
प्रेम का संबंध एक कोमल धागे जैसा होता है। यदि इसे तोड़ा जाए, तो वह दोबारा जुड़ने पर भी गाँठ छोड़ जाता है।
व्याख्या:
यह दोहा प्रेम और रिश्तों की नाज़ुकता को दर्शाता है। एक बार अगर रिश्तों में दरार आ जाए, तो उसे जोड़ना कठिन होता है।
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥”
अर्थ:
जो लोग उत्तम स्वभाव के होते हैं, वे बुरी संगति में रहकर भी प्रभावित नहीं होते। जैसे चंदन पर साँप लिपटे रहते हैं लेकिन उसका असर चंदन पर नहीं होता।
व्याख्या:
यह दोहा सिखाता है कि अच्छे चरित्र वाला व्यक्ति बुरी परिस्थितियों में भी अपनी अच्छाई नहीं छोड़ता।
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून॥”
अर्थ:
पानी यानी विनम्रता बहुत जरूरी है। इसके बिना सब कुछ व्यर्थ है। जैसे मोती, इंसान और आटा – सब पानी के बिना अधूरे हैं।
व्याख्या:
यह दोहा हमें अहंकार से बचने और विनम्रता को अपनाने का संदेश देता है।
“देनहार कोई और है, भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, तासो नीचे नैन॥”
अर्थ:
जो देने वाला है, वह कोई और (ईश्वर) है। लोग भ्रमवश हमें श्रेय देते हैं, पर हमें सिर झुकाए रहना चाहिए।
व्याख्या:
यह दोहा विनम्रता की चरम स्थिति दर्शाता है – सच्चा व्यक्ति कभी अहंकार नहीं करता।
“निज मन की गति आप ही जानै।
और न जाने कोउ॥”
अर्थ:
अपने मन की अवस्था को सिर्फ स्वयं ही जान सकता है, और कोई नहीं।
व्याख्या:
यह दोहा आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है – बाहर से कोई आपकी सच्ची स्थिति को नहीं समझ सकता।
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥”
अर्थ:
बड़ों को देखकर छोटों को मत फेंको। जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार कुछ नहीं कर सकती।
व्याख्या:
यह दोहा सिखाता है कि हर किसी का अपना महत्व है, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो।
“रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय॥”
अर्थ:
छोटी अवधि की विपत्ति भी अच्छी होती है क्योंकि इससे यह समझ में आता है कि कौन हितैषी है और कौन नहीं।
व्याख्या:
कठिन समय हमें सच्चे और झूठे रिश्तों की पहचान करवाता है।
और भी श्रेष्ठ दोहे – बिना विस्तार के
“रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहि लोग सब, बाँटी न ले कोय॥”
“कबहुँ कमानी राखिए, बाँधि कंठ धन ध्यान।
अंधकार सब भाग ज्यों, दीपक दे प्रकाश॥”
“रहिमन यह तन ते बहुत, मन की बात बलाय।
तन बिनु मन, मन बिनु जतन, सब फीका फलाय॥”
“रहिमन चुप साधिए, देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगै देर॥”
“समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जाय।
सदा रहे न एक सी, का रहीम बुरे भाय॥”
“नैनन ही सों होत है, नैनन ही सों हेर।
नैनन ही सों पीवतें, नैनन ही सों फेर॥”
“ज्यों रहीम बड़भाग से, होत न कोउ महान।
सच्चे भाव भक्ति बिना, सब रहि जात अज्ञान॥”
“जो गरीब को मारते, ताके गति नहीं होय।
रहिमन ऐसे नर को, कभी न देवो गोय॥”
“रहिमन तिनकी पीर से, पथरि पानी फोर।
जो टूटे मन भाव का, ताके लागे जोर॥”
“धीरज, धर्म, मित्र और नारि।
आपद काल परखिए चारी॥”
“सीस झुकावे जो वृथा, वह नाही संत।
रहिमन कहे वह जंतु है, जो कहे झूठे अन्त॥”
“रहिमन बोलेमिठु सो, सब जग जाने माहि।
जो गरजै, घात करे, सो नर नहीं सुजान॥”
“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय॥”
रहीम के दोहों से मिलने वाली शिक्षाएं
जीवन में विनम्रता
रहीम ने कई दोहों में विनम्रता की महत्ता को बताया। घमंड विनाश की ओर ले जाता है, जबकि नम्रता आत्मबल और सम्मान दिलाती है।
रिश्तों की नाज़ुकता
रहीम के दोहे बताते हैं कि संबंधों को सहेजकर रखना चाहिए। एक बार रिश्तों में दरार आ जाए तो वह कभी वैसा नहीं रह पाता।
समय की पहचान
रहीम के दोहे समय के महत्व को उजागर करते हैं। समय के साथ चलना और धैर्य रखना बहुत जरूरी है।
सच्चाई और व्यवहार
रहीम हमेशा सत्य बोलने और अच्छा आचरण करने की प्रेरणा देते हैं। उनका हर दोहा किसी ना किसी जीवन मूल्य की ओर इंगित करता है।
निष्कर्ष
रहीम दास जी के दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उन्होंने जिन बातों को दो पंक्तियों में कहा है, वह जीवन भर का मार्गदर्शन देने में सक्षम हैं। उनके दोहे सिर्फ साहित्य नहीं, बल्कि जीवन की गूढ़ शिक्षाएं हैं।
यदि हम उनके दोहों को अपने जीवन में उतारें, तो न केवल हमारा व्यवहार सुधरेगा, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक परिवर्तन आएगा।